Morning kids moral hindi story - जिद्दी ब्राह्मण

 

जिद्दी ब्राह्मण

Morning kids moral hindi story - जिद्दी ब्राह्मण
विद्वान साधु


एक बार की बात है कि गंगा नदी के किनारे बसे एक रमणीय नगर में एक ब्राह्मण रहता था। नाम था राजमल। वह वेदों का ज्ञाता था, यज्ञ आदि भी किया करता था। पंडित तो वह था ही, धनी भी बहुत था। लेकिन धनी होने पर भी भिक्षाजीवी था । उसकी पत्नी का नाम कमला था। किन्तु स्वभाव से
वह बहुत क्रोधी थी। राजमल के कोई सन्तान नहीं थी। संतान के लिए वह दिन-रात चिंतित रहता था। उसे अपना धन और अपना पांडित्य सब व्यर्थ लगता था। उसने सन्तान की प्राप्ति के लिए कई बार यज्ञानुष्ठान किए फिर भी उसे सन्तान की
प्राप्ति नहीं हुई। इसी चिन्ता में घुलते-घुलते वह बहुत कमजोर भी हो गया। जब सन्तान प्राप्ति की आशा बिल्कुल क्षीण हो गई तो राजमल को विरक्ति हो गई और एक दिन वह सुबह-सुबह वन की ओर चल पड़ा। उसके चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। शरीर बहुत पतला हो गया था। जब वह
नगर से दूर चला गया तो रास्ते में उसकी भेंट एक महात्मा से हुई। महात्मा ने उसको उदास देखकर उससे पूछा-"ब्राह्मण देवता! आप बहुत दुःखी दिखाई रहे हैं। क्या कारण है ?
"महात्मा की दयालु आवाज सुनकर राजमल का मन और अधिक दुःखी हो गया।" उसकी आंखों में आंसू आ गए। फिर वह दुःखी स्वर में बोला-"महात्मन्! मेरे पास विद्या है, धन भी है, पर सन्तान नहीं है। सन्तान की प्राप्ति के लिए मैंने अनेक यज्ञानुष्ठान किए । फिर भी संतानहीन ही हूं।" राजमल की व्यथा सुनकर महात्मा के मन में उसके प्रति सहानुभूति
हुई। महात्मा ने अपनी योग-शक्ति से सब कुछ जान लिया। फिर सोचते हुए कहा-" ब्राह्मण देवता ! विधाता ने जब आपके भाग्य में सन्तान लिखी ही नहीं है तो फिर आपको सन्तान की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? 
 लेकिन महात्मा की बात का असर राजमल के हृदय पर बिल्कुल भी नहीं पड़ा। उसने बड़ी दीनता और नम्रता दिखाते हुए कहा-"महात्मन्! कोई
ऐसा उपाय कीजिए जिससे मुझे केवल एक पुत्र की ही प्राप्ति हो जाए। पुत्र के बिना तो जीवन व्यर्थ है।"
महात्मा ने सोचते हुए कहा-"ब्राह्मण देवता! आप वेदों के ज्ञाता हैं, यज्ञ आदि भी करते हैं। आपको इस तरह मोह में नहीं पड़ना चाहिए। जीवन में और शांति सन्तान से नहीं मिलती, बल्कि भगवान की भक्ति से सुख मिलती है। सन्तान के मोह की चिन्ता छोड़कर भगवान की भक्ति में मन
लगाइए।" लेकिन महात्मा की बात भागमल के गले नहीं उतरी। उसने महात्मा की ओर देखते हुए कहा-"महात्मन्! यदि आप अपनी योग शक्ति से मुझे एक संतान नहीं देंगे तो मैं आपके सामने ही अपने प्राणों को त्याग दूंगा।" महात्मा ने राजमल से कहा- 'ब्राह्मण देवता! जिद करके जो
वस्तु प्राप्त की जाती है, उससे दुख के सिवा कुछ नहीं मिलता।" किन्तु राजमल महात्मा की बात से सन्तुष्ट नहीं हुआ। वह सन्तान की प्राप्ति के लिए अनुनय-विनय करता रहा, न मिलने पर आत्मघात करने की बात भी कहता रहा। आखिर महात्मा ने अपने योगबल से उसे एक पुत्र होने
का आशीर्वाद दे दिया। महात्मा की दया से उसके घर एक पुत्र पैदा हुआ। उसका वह पुत्र इतना दुखदायी सिद्ध हुआ कि ब्राह्मण का हृदय कांप उठा।




शिक्षा : जो वस्तु जिद-बहस करके प्राप्त की जाती है, उसका फल
कभी सुखदायी नहीं होता और न ही मन की संतुष्टि होती है।

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