सफलता अपने ही काम में है
एक मजदूर बहुत परिश्रमी और ईमानदार था । सारे दिन काम करने पर जो मजदूरी मिलती उसी से वह गुजारा करता और खुश रहता। वह भगवान का भक्त, था। काम के बाद जो समय मिलता, उसमें वह भगवान की भक्ति
करता। एक दिन वह काम से लौटा और भोजन कर भगवान का ध्यान करके. सो गया। स्वप्न में भगवान ने उसे दर्शन देकर कहा- "बेटा ! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। जों इच्छा हो मांग-लो।"
मजदूर बड़ा भोला था। उसने कहा-" प्रभु! मुझे एक छायादार वृक्ष बना दो।" भगवान ने उसे छायादार बृक्ष बना दिया। कुछ देर में सूरज की तेज गरमी से उसकी पत्तियां सूख कर झड़ गई तो उसे लगा कि सूरज वृक्ष से अधिक शक्तिशाली है।
उसने भगवान का स्मरण कर प्रार्थना की-" प्रभो ! मुझे सूरज बना दो।" अगले ही पल वह सूरज बन गया। सूरज बनकर वह तेजी से चमकने लगा। तभी बादल के एक टुकड़े ने आकर उसे ढक लिया। सूरज को लगा कि बादल सूरज से भी अधिक शक्तिशाली है । उसने भगवान से फिर प्रार्थना की-'हे प्रभो! मुझे बादल बना दो।" वह बादल बन गया तो हवा का एक झोंका आया और उसे गेंद की तरह इधर-उधर उड़ाने लगा। बादल को लगा कि वह हवा से भी कमजोर है। उसने भगवान से उसे हवा बनाने की प्रार्थना की। भगवान ने उसे कृपापूर्वक हवा बना दिया। हवा बनकर वह आसमान में उड़ने लगा। अचानक उसके मार्ग में एक विशालकाय पर्वत आ गया जिससे उसके वेग में व्यवधान पैदा हो गया। उसने सोचा कि पर्वत तो हवा से भी अधिक ताकतवर है । उसने भगवान से
पर्वत बनाने की प्रार्थना की। भगवान ने उसे पर्वत बना दिया। तभी उसे अपने पैरों में चुभन महसूस हुई। झुककर उसने देखा कि एक मजदूर उसे छैनी- हथौड़े से तोड़ रहा है। यह देखकर उसे अपने आप पर शर्म आई और उसने
सोचा कि पर्वत से भी शक्तिशाली तो मजदूर है। तभी उसकी आंखें खुल गईं और उसे यह जानेकर ड़ी प्रसन्नता हुई
कि वह मजदूर ही है। उसने भगवान का धन्यवाद किया-" हे भगवान ! मैं तो मजदूर ही भला।"
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