नहले पर दहला
एक सब्जी विक्रेता और पंसारी आपस में दोस्त थे। सब्जी विक्रेता पंसारी की दुकान के सामने ठेले पर सब्जी बेचता था । एक बार वह गांव गया तो अपनी पीतल की तराजू व बट्टे पंसारी के पास रख गया। कुछ दिनों बाद लौटकर उसने पंसारी से अपनी तराजू व बट्टे वापस मांगे। मगर पंसारी के मन में बेईमानी आ गई थी । उसने कहा-"कैसे
तराजू |
तराजू-बट्टे भैया! अब मैं कहां से लौटाऊं, उन्हें तो चूहे खा गए।"पंसारी की बात सुनकर सब्जी विक्रेता को बहुत गुस्सा आया। पर उसने गुस्से को पीकर कहा-"इसमें तुम्हारा क्या दोष ? चूहे तो आखिर चूहे ही हैं।" फिर एक दिन सब्जी विक्रेता ने पंसारी से कहा-"देखो, मैं कुछ सामान खरीदने शहर जा रहा हूं। तुम्हें भी कुछ मंगाना हो तो अपने बेटे को साथ भेज दो। हम लोग कल तक लौटेंगे। " पंसारी ने जरूरी सामान का पर्चा अपने बेटे को थमाया और सब्जी विक्रेता के साथ शहर भेज दिया। दूसरे दिन सब्जी विक्रेता शहर से लौट आया। पंसारी का बेटा उसके साथ नहीं था। यह देख पंसारी ने पूछा-" अरे, मेरा बेटा कहां है?"' "क्या बताऊं मित्र! तुम्हारे बेटे को तो बाज ले भागा।" सब्जी विक्रेता ने मायूसी से कहा। "क्यों झूठ बोलते हो ? इतने बड़े लड़के को भला बाज कैसे ले जा सकता है ?" पंसारी ने गुस्से में आकर कहा।
सब्जी विक्रेता उसे देखकर मुस्कराया।
पंसारी उसे मुस्कराते देख गुस्सा हो गया और बोला- "जल्दी बता मेरा बेटा...।"
पंसारी की बात काटकर सब्जी विक्रेता ने जवाब दिया-" भैया! जब चूहे तराजू और बट्टे खा सकते हैं तो बाज क्यों नहीं बच्चे को उठा सकता।" सुनकर पंसारी समझ गया कि सब्जी. बिक्रेता ने नहले पर दहला मारा है। वह तुरन्त उठा और दुकान के पिछले हिस्से में रखे तराजू और बट्टे लाकर सब्जी विक्रेता को देते हुए बोला- " मुझे क्षमा कर दो भाई ! तुम्हारी पीतल
की देखकर मेरे मन में खोट आ गया था।"
शिक्षा : जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है ।
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