और असली चोर पकड़ा गया
किसी शहर में एक धनी व्यापारी रहता था। उसका व्यापार दूर देश तक केवल संतान न होने का। उसका सारा कारोबार सेवकों के खूते पर चलता था। वह अपने सेवकों को प्रसन्न रखता था। सेवक भी मालिक से प्रसन्न व्यापारी के गोदाम की देखभाल के लिए चार पहरेदार नियुक्त थे। पहला पहरेदार ईमानदार था तथा निष्ठा से माल की रखवाली करता था। दूसरा पहरेदार लापरवाह था। वह रात भर सोता रहता था। तीसरे पहरेदार की आदतें खराब धीं। वह रात होते ही नशा करता था। चौथा पहरेदार चोर था। जैसे ही रात होती, वह इधर-उधर चोरी करने निकल जाता था। गोदाम का माल अगर सुरक्षित था तो सिर्फ ईमानदार पहरेदार की वजह से। लेकिन व्यापारी यही समझता था कि चारों पहरेदार निष्ठा से चौकीदारी करते हैं। इसलिए एक दिन खुश होकर व्यापारी ने चारों पहरेदारों को पुरस्कार देने का निश्चय किया। उसने चारों को बुलाया तो चारों पहुंचे। व्यापारी मकान के छज्जे पर खड़ा था। उसने ऊपर से ही मोहरों की चार थैलियां नीचे फेंककर कहा-"चारों एक-एक बार लो।" जल थैलियां नीचे आई तो चारों पहरेदार लपके । तीन पहरेदारों को तो थैलियां मिल गईं, पर ईमानदार चौकीदार टांपता रह गया। क्योंकि पता नहीं
चौथी थैली कहां गायब हो गई थी? ईमानदार चौकीदार ने व्यापारी से शिकायत की। व्यापारी को यह जानकर बहुत बुरा लगा कि उसका कोई सेवक बेईमान भी है। वह सीधा राजमहल पहुंचा और राजा को सारा किस्सा बताया। राजा ने
कोसवाल को बुलाकर कहा-'कल तक चोर का पता लगाओ, नहीं तो नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।"कोतवाल दुविधा में पड़ गया। उसने चारों पहरेदारों को कोतवाली में बुलाया और पूछताछ की। लेकिन चोर का पता न चला। गुस्से में आकर
उसने चारों पहरेदारों को हवालात में बंद कर दिया और घर आकर बिना खाए-पिए चारपाई पर लेट गया। कोतवाल की बेटी अपने पिता को चिंतित देखकर परेशान हो उठी। उसने अपने पिता से परेशानी का कारण पूछा तो कोतवाल सबकुछ बताते हुए बोला-"अगर कल तक चोर का पता न लगा
तो राजा मुझे नौकरी से हटा देंगे।" लड़की ने कुछ देर सोचकर कहा-"आप चिंता न करें पिताजी! चोर
का पता मैं लगाऊंगी।" लड़की ने हल्का-सा शृंगार किया और कैदियों का भोजन लेकर उस कोठरी में जा पहुंची, जिसमें उन चारों पहरेदारों को रखा गया था। पहरेदार एक युवती को अपने सामने देख हत्प्रभ रह गए। कोतवाल की बेटी उनके
मनोभावों को भांपकर मुस्कराती हुई बोली-"मैं यहां कैदियों को खाना खिलाती हूं। जो कैदी मेरी कहानियां सुनता है, उसे मैं भरपेट स्वादिष्ट भोजन खिलाती हूं।" स्वादिष्ट भोजन के लोभ में चारों ने कहानी सुनना मंजूर कर लिया। तब लड़की कहानी आरंभ करती हुई बोली-“एक लड़की थी। बचपन में ही
उसकी शादी हो गई थी। वह अपने मां-बाप के साथ रहती थी। जब वह बड़ी हो गई तो मां-बाप ने उसे पति के घर भेजने का निश्चय किया। मगर ससुराल से उसे लेने कोई नहीं आया। अत: वह सज-संवर कर अकेली ही ससुराल की ओर चल पड़ी। रास्ता कठिन था, पर वह बिना घबराए आगे बढ़ती गई।
अचानक रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसने लड़की से सारे गहने उतार कर देने को कहा। लड़की ने विनती की कि वह पहली बार पति के घर जा रही है, अगर बदन पर गहने न हुए तो ससुरालवाले बुरा मानेंगे। इसलिए पति के घर पहुंचकर वह गहने उसे सौंप देगी।" चोर मान गया और उसके पीछे- पीछे चलने लगा। आगे चलकर एक शराबी ने लड़की का रास्ता रोक लिया। लड़की ने उससे कहा-'मैं ससुराल जा रही हूं, तुमसे बाद में मिलूंगी।' शराबी लड़की पर मुग्ध हो गया था। वह भी उसके पीछे चल पड़ा। थोड़ी दूर चलने पर लड़की को एक दानव ने रोक लिया। वह भूखा था। बोला-'ऐ लड़की ! मैं तुझे खाऊंगा।' लड़की ने बिना घबराए उत्तर दिया-'पहले मुझे
पति के दर्शन कर लेने दो, फिर खा लेना।' दानव ने उसकी बात मान ली। वह भी लड़की के साथ हो लिया। लड़की ससुराल पहुंची। उसने अपनेसास ससुर और पति के पांव छुए। ससुरालवालों ने उसे भरपूर आशीर्वाद दिया। दरवाजे के बाहर चोर, शराबी और दानव खड़े थे। ऐसा मनोहर
पारिवारिक दृश्य देखकर उनका मन पिघल गया। उन्होंने लड़की को आगे तंग करने का विचार त्याग दिया और वहां से वापस लौट गए।" कहानी सुनाकर लड़की ने चारों पहरेदारों से पूछा अब तुम लोग बताओ कि चोर, शराबी और दानव में किसका स्वभाव अधिक अच्छा था?" पहला पहरेदार ईमानदार था, उसने नाक-भौं सिकोडकर कहा- "इनमें भला किसका स्वभाव अच्छा हो सकता है। तीनों ही दुष्ट थे।" दूसरे पहरेदार ने दानव को अधिक अच्छा बताया। वह बोला-"देखो
न, भूखा होते हुए भी उसने लड़की को नहीं खाया।" तीसरा पहरेदार बोला-"अरे, सबसे अच्छा शराबी था, देखो न किस
उसने चुपचाप लड़की को जाने दिया।" चौथा बोला-"तुम लोग तो बेवकूफ हो। सबसे अच्छा तो चोर था। सामने इतने गहने होते हुए भी उसने लड़की को हाथ नहीं लगाया।" कोतवाल की लड़की चारों के उत्तर सुनकर समझ गई कि चोर कौन है। जो पहरेदार जिस प्रवृत्ति का था, उसने उसी प्रवृत्ति वाले की प्रशंसा की थी। वह अपने मकसद में कामयाब हो गई थी, अत: वह घर लौट आई। उसने अपने पिता को असली चोर के बारे में बता दिया। दूसरे दिन सुबह होते ही कोतवाल हवालात में पहुंचा और चोर को राज-दरबार में पेश कर दिया। राजा ने चोर को गौर से देखा और पूछा-"मोहरों की थैली कहां है?"
चोर चोरी से इन्कार करते हुए बोला-"मैं बेकसूर हूं महाराज ! मुझे उस थैली के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। काफी पूछने पर भी जब चोर ने मोहरों की थैली का पता न बताया तो
राजा को क्रोध आ गया। उसने चोर को फांसी की सजा सुना दी। उसने तुरंत राजा को मोहरों की थैली का पता बता दिया। इस प्रकार असली चोर पकड़ा गया।
शिक्षा : चिंता करना किसी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि
बुद्धि द्वारा समाधान खोजना चाहिए।
0 Comments
Please do not spam any link in here