दादा - दादी की कहानियां : लोमड़ी और सारस
Dada - dadi ki kahaniyan - lomdi aur saras ki kahani, hindi moral story
शीर्षक ;-लोमड़ी और सारस
किसी जंगल में एक अत्यधिक चतुर लोमड़ी रहती थी। उसे दूसरों के मूर्ख बनाने में बहुत आनंद मिलता था।
उस चतुर लोमड़ी की मित्रता एक सारस से थी। मगर बेचारा सारस बहुत सीधा-साधा सच्चा प्राणी था। एक दिन लोमड़ी ने सोचा कि क्यों न सारस के साथ भी थोड़ा हंसी मजाक कर लिया जाए। यही सोचकर वह सारस के पास गई और उसे अपने यहां भोजन का न्योता दिया।
”धन्यवाद! लोमड़ी जी।“ सारस बोला- ”मुझे भोजन पर आमंत्रित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! मैं अवश्य आऊंगा।“
निश्चित दिन तथा समय पर सारस लोमड़ी के घर दावत खाने पहुंच गया। जब भोजन का समय आया तो जैसे पहले से ही योजना बनी हुई थी, लोमड़ी ने प्लेटों में सूप परोसा। लोमड़ी के लिए तो प्लेट में सूप पीना कोई समस्या नहीं थी, मगर बेचारा सारस तो केवल अपनी चोंच का आखिरी सिरा ही सूप में भिगो पाया। भला चोंच से सूप कैसे पीता। वह भूखा ही रह गया।
सारस ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया। वह समझ गया कि लोमड़ी ने उसका मजाक उड़ाने के लिए ही इस दावत का प्रबंध किया है।
इधर, लोमड़ी ने दोबारा चुटकी ली- ”क्यों, भोजन पसंद आया या नहीं?“
”धन्यवाद!“ सारस बोला- ”तुम भी किसी रोज मेरे यहां आओ और भोजन का आनन्द लो।“ सारस ने मन ही मन सोच लिया था कि वह लोमड़ी से अपने इस अपमान का बदला अवश्य लेगा।
दूसरे दिन ही लोमड़ी सारस के घर पहुंच गई। वह अपने साथ सारस को भेंट में देने के लिए कुछ भी नहीं लाई थी।
‘मैं खूब जमकर खाऊंगी।’ लोमड़ी ने सोचा।
सरस ने भी भोजन में सूप ही तैयार किया था। उसने सूप को लम्बी गरदन वाली सुराही में परोसा। उसने तो अपनी लम्बी चोंच सुराहीदार बरतनों में डालकर खूब छक कर सूप पिया। परंतु लोमड़ी इन सुराहियों के चारों तरफ चक्कर लगा कर यही देखती रही कि वह सूप पिए तो कैस पिए? लाख कोशिश करने पर भी वह सूप नहीं पी पाई। केवल इन सुराहियों को बाहर से ही चाह सकी। उसे भी सारस की तरह ही भूखा रहना पड़ा। इस प्रकार सारस ने अपने अपमान का बदला ले लिया।
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