पंचतंत्र की बोध कथा - गीदड़ की गवाही
गीदड़ की गवाही -
किसी देश का राजकुमार जंगल से होकर गुजर रहा था कि मार्ग में एक गीदड़ आ टपका। राजकुमार ने कहा - "ए गीदड़ ! मेरे रास्ते से हट "। मगर ढीठ गीदड़ टस से मस नहीं हुआ। राजकुमार को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन झगड़ा न करके बगल से गुजर गया। शाम होते-होते वह एक शहर में पहुंचा और पंसारी के यहां रात गुजारने की प्रार्थना की। पंसारी सहमत हो गया। राजकुमार ने घोड़ा उसके घर के बाहर ही खूटे से बांध दिया। सुबह पंसारी ने उसे जगाकर कहा कि देखो, उसके खूटे ने एक घोड़े को पैदा किया है।
राजकुमार बोला-"यह घोड़ा तो मेरा है।"
इस पर पंसारी बोला-"अगर तुम्हारा है तो तुमने रात ही मुझे क्यों नहीं बताया। तुम झूठ बोलते हो।"
घोड़े को लेकर दोनों में 'तू-तू, मैं-मैं हो गई। मामला अदालत तक पहुंचा। अदालत में पंसारी के पड़ोसियों ने पंसारी के पक्ष में गवाही दी।
न्यायाधीश ने राजकुमार से भी कोई गवाह पेश करने को कहा। लेकिन उसके पास गवाह कहां था। तभी उसे जंगल में मिले गीदड की याद आई। वह न्यायाधीश की आज्ञा लेकर उसके पास गया और उससे गवाही देने की प्रार्थना की।
गीदड़ ने कहा-"ठीक है, मैं कल आऊंगा।" अगले दिन गीदड़ अदालत में उस समय पहुंचा जब न्यायाधीश फैसला सुनाने जा रहे थे। पहुंचकर गीदड़ बोला-"क्षमा करें मैं
राजकुमार का गवाह हूं और ये घोड़ा इसी का है।
"तुम्हारे पास कोई सबूत है?' "सरकार ! सबूत तो मेरे पास था, नदी में आग लगने के कारण वह जल गया।" उसकी बात सुनकर न्यायाधीश गुस्से से बोले-"क्या बकवास करता है। कभी नदी में भी आग लगती है। "सरकार ! जब खूटे से घोड़ा पैदा हो सकता है तो नदी में आग क्यों नहीं लग सकती।" सुनते ही न्यायाधीश उसकी बात समझ गए। उन्होंने फौरन वह घोड़ा राजकुमार को दिलवाया और पंसारी को हवालात में भेज दिया।
शिक्षा : विजय सदैव सत्य की ही होती है।
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